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शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

9:55 pm

हिंदी भाषा की उपेक्षा कर किस ओर बढ़ रहे हम ....

   यह जानकर आप सब को भी हैरानी होगी कि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है –हिन्दी | चीनी भाषा मंदारिन के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है | भारत और अन्य देशो में 60 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते , पढते और लिखते है | भारत के अतिरिक्त मरिशस , सूरीनाम , गुयाना ,फिजी जैसे देशो में भी अधिकतर जनता हिंदी बोलती है |
    लेकिन क्या हम भारत के लोग अपनी भाषा हिंदी को महत्व दे रहे है ?
सन 1953 से 14 सितम्बर को प्रति वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है क्या हमारी हिंदी भाषा मर चुकी है कि हम उसे एक विशेष दिन श्रध्दांजलि अर्पित करते है क्या कभी अपने अंग्रेजी दिवस या चीनी दिवस सुने है ? नही ना ? हिंदी दिवस मानाने का अर्थ ऐसा लगता है कि गुम होते हुए किसी चीज को बचाने का प्रयास किया जा रहा है |
    हिंदी भाषा का इतना प्रचलन होते हुए भी हम दुसरे भाषा के पीछे भागते है हमारी सोच ऐसी हो गयी है कि जिसे अंग्रेजी नही आती उसे हीन मानते है हम सोचते है की अंग्रेजी विकसितो की भाषा है |    लेकिन क्या चीन , स्पेन , फ्रांस , रूस ये अपने ही भाषा को मजबूत कर विकसित नही है | विकास करने के लिए दुसरो की भाषा भी जननी चाहिए  लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये की अपने इतिहास को जनना चाहिए | कितने बड़े बड़े लेखक प्रेमचंद्र , मैथिलि शरण गुप्त और बहुत लेखक  जिन्होंने सामाजिक जीवन का सही और सजीव चित्रण किया है हम उसे नही पढते नही जानते | आज बड़े वर्ग और छोटे वर्ग में दूरियां क्यों बढ़ रही है इसी भाषा के विभाजन से बड़ा वर्ग अपना इतिहास नही जान पाता | वो नही जान पता की हमारा देश पहले कैसा था या अब कैसा है | अगर वह इतिहास पढता भी है अंग्रेजी भाषा में पढने की वजह से उसके अन्दर वो भाव पैदा नही होता  क्योंकि मातृभाषा में लिखी हुई लेख जो एक लेखक अपनी लेख को सजीव बना देता है उसे कोई कितना भी सही तरीके से अनुवाद कर ले उसके अन्दर वो भाव नही भर सकता |    
    कोई बच्चा माँ के पेट से कोई भाषा सिख कर नहीं आता उसे भाषा का ज्ञान अपने आस पास सुनाई देने वाली भाषा से ही होता है | भारत के अधिकतर घरो में बोलचाल की भाषा हिंदी है ऐसे में बच्चे हिंदी भाषा आसानी से सिख और समझ सकते है  लेकिन जब यही बच्चे 3 या 4 साल के होते है तो इन्हें अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में भेजा जाता है जहाँ इन पर अंग्रेगी सिखने का दबाव डाला जाता है | हालत ये है की ये बच्चे आस पास सुनते और बोलते हिंदी में है और पढते अंग्रेगी में है जिससे ये अपने समाज को अपने परिवेश को सही तरीके से नही जान पाते क्योंकि अपने परिवेश को देखकर उनके अन्दर जानने की जिज्ञासा होती है तो स्कूल में उसे हिंदी में बताया नही जाता और जो बाते अंग्रेजी में बताई जाती है वह उनको समझ नही आता | अब तो ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ बड़े शहर की मदर ( माँ ) अपने बच्चे से अंग्रेजी में ही बोलती है  don’t cry baby , don’t touch this beta  अब आप ही बताईये अगर कोई बच्चा रोये तो एक साधारण माँ कितने तरीके से शायद सैकड़ो तरीके से अपने बच्चे को मना सकती है एक साधारण माँ जो अपने बच्चे को मातृभाषा में प्यार और दुलार दे सकती है उसके अन्दर जो भावनाएं जो प्यार भर सकती  है क्या  वे औरते जो है तो भारत की बोलती हिंदी है लेकिन थोडा अंग्रेजी बोलने का शौक पूरा करती है और बच्चे को अंग्रेजी बोलती है अपने बच्चे में वह प्यार वह भावनाए भर सकती है ? बिलकुल नही |

  बच्चो को उसके मातृभाषा से दूर कर उनको जबरदस्ती अंग्रेजी सिखने और बोलने पर मजबूर करते देख मुझे तो ऐसा लग रहा है की इनका हाल एक रोबोट जैसे हो गया है जो कुछ विशेष आवाज से नियंत्रित ( voice control ) होते है जिनके अन्दर भावनाओं की कमी है ....