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शनिवार, 18 अगस्त 2018

12:01 pm

राष्ट्रगान न गाने पर देशद्रोह तो संविधान जलाने पर कोई सजा क्यों नही ??

    दोस्तों आज कल दॊ विडियो बहुत चर्चा में है | एक तो यह कि किसी मदरसे में 15 अगस्त को झंडा फहराने के बाद एक शिक्षक बोलता है कि राष्ट्रगान करो तभी एक मौलवी मना करता है कि यहा राष्ट्रगान नही होगा क्योंकि हमारा मजहब इसको मान्यता नही देता | उस मौलवी के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का केस हुआ उसे जेल भेज दिया गया , बहुत अच्छा हुआ और मै तो कहता हु चाहे कोई भी हो अगर वह देश के किसी भी ऐसे प्रतीक का जो कि हमारे देश की एकता और अखंडता बनाये रखने के लिए आवश्यक है का विरोध करता है तो उसे कानून के तहत  सजा मिलनी ही चाहिए | इस देश में चाहे कितनी भी विविधता हो ,कितने भी धर्म व सम्प्रदाय  को मानने वाले लोग  हो , उनके रीति-रिवाजो में कितनी भी भिन्नतायें हो लेकिन इन प्रतीकों के माध्यम से ही हम सभी की पहचान यह है कि हम सभी भारतीय है | यही इन प्रतीकों का महत्व है | मुझे नही लगता की  जब हमारे राष्ट्र की बात आये तो हमें यह सोचना चाहिए की हमारा धर्म इसे मान्यता देता है या नही क्योंकि यह देश है तो हम है और हम है तो हमारा धर्म और सम्प्रदाय |
    एक दूसरा विडियो ये है जिसमे दिल्ली में कुछ लोग इक्कठा होकर संविधान जला रहे है और बोल रहे है मनुस्मृति जिंदाबाद (आप लोगो को मनुस्मृति के हकीकत को भी जानना चाहिए )| जो संविधान हमारे देश को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्रदान करता है जो हमारे अधिकारों को सुरक्षित करता है और देश के प्रति हमारे कर्तव्यों का एहसास दिलाता है उस पवित्र संविधान के प्रति इनकी गन्दी मानसिकता और नफरत उस विडियो में देखा जा सकता है |

जो लोग विडियो नहीं देखे है उनके लिए लिंक निचे दिया है ....
  https://www.youtube.com/watch?v=k8GVXfn0Dk0
 https://www.youtube.com/watch?v=nPF6Y52WY3k
   दोस्तों अब मेरा सवाल ये है कि जो संविधान राष्ट्रगान को राष्ट्रगान का दर्जा देता है उसके बारे में नियम बनाता है और जो लोग उस नियम का उल्लंघन करते है उन्हें सजा देता है और वो सजा हाल में दी जा रही है (मौलवी को )| बाकी संविधान का कितना महत्व है काफी लोग जानते है | तो आखिर संविधान जलाने वाले उन लोगो को सजा क्यों नही आखिर क्यों नही ??
   इसके पीछे आपको क्या वजह लगता  है , दोस्तों कमेंट कर के जरुर बतायें ...




शनिवार, 12 सितंबर 2015

10:05 pm

हिन्दी भाषा के बढ़ते कदम .. विश्व भाषा की ओर

    हिंदी भाषा का जन्म लगभग 1000 ईस्वी में हुआ था लेकिन उसमे साहित्य रचना का कार्य सन 1150 के आस पास हुआ  |  राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा सन 1917 में भरूच ( गुजरात ) में सर्वप्रथम राष्ट्रभाषा के रूप हिंदी को मान्यता प्रदान की गयी | 14 सितम्बर 1949 को सविधान सभा ने एकमत से हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया और सन 1950 में सविधान के अनुच्छेद 343 (1) के द्वारा हिंदी के देवनागरी लिपि को राजभाषा का दर्जा दिया गया | हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए सन 1953 से 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा |
  अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रति जागरूकता पैदा करने और हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिए विश्व हिंदी सम्मलेन जैसे समारोह की शुरुआत की गयी | 10 जनवरी 1975 को नागपुर से शुरू हुआ यह सफ़र आज भी जारी है | अब इस दिवस को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है |
  हिंदी का प्रचार प्रसार और लोकप्रियता पुरे विश्व में इस कदर बढ़ा है कि हिंदी भाषा आज भारत ही नही पुरे विश्व में एक विशाल क्षेत्र और जनसमूह की भाषा है | 1952 में हिंदी भाषा प्रयोग होने वाली भाषाओ में पाचवें स्थान पर थी | 1980 के आस पास वह चीनी व अंग्रेगी के बाद तिसरे  स्थान पर आ गयी | 1991 में पाया गया की हिंदी बोलने वालों की संख्या पुरे विश्व में अंग्रेगी बोलने वालों की संख्या से अधिक है जो माध्यम वर्ग के लोगो में फैली है | इस मध्यम लोगो का भी आज विश्व में भागीदारी बढ़ी है जिससे अपने माल के प्रचार प्रसार , गुणवत्ता आदि के लिए हिंदी भाषा को अपनाना बहुराष्ट्रीय कंपनियों की विवशता है और उनकी यही विवशता आज हिंदी के प्रचार प्रसार और लोकप्रिय होने की शक्ति बन गयी है  |
  1990 में बहुराष्ट्रीय कंपनिया भारत आई जो अंग्रेजी भाषा लेकर आई , मीडिया में स्टार चैनल , सोनी चैनेल अंग्रेगी भाषा में अपने कार्यक्रम ले आये | लेकिन इन्हें भी अपने दर्शक बढ़ाने व मुनाफा कामने के लिए हिंदी के तरफ मुड़ना पड़ा | आज टीवी चैनलों एवं मनोरंजन की दुनिया में हिंदी सबसे अधिक मुनाफे की भाषा है |
   आज हिंदी की लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी है कि 40 से आधिक देशो के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिंदी पढाई जा रही है | मारीशश में 1950 से ही हिंदी पढ़ाया जाता है | फिजी में शिक्षा विभाग द्वारा संचालित सभी बाह्य परीक्षाओ में हिंदी एक विषय के रूप में पढाई  जाती है | श्रीलंका में भी हिंदी पढ़ाई जाती  है | ब्रिटेन , कैम्ब्रिज तथा न्यूयार्क के विश्वविद्यालय में भी हिंदी पठन –पाठन की व्यवस्था है | अमेरिका के येन विश्वविद्यालय में 1815 से ही हिंदी की व्यवस्था है वहाँ 30 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी पाठ्यक्रम आयोजित किया जाता है | यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टइन्डीस में हिंदी पीठ स्थापित किया गया है | गुयाना के विश्वविद्यालयों में बी ए स्तर तक हिंदी का पठन – पाठन होता है | फ्रांस , इटली , स्वीडन आस्ट्रिया , डेनमार्क , जर्मन , रोमानिया , बुल्गारिया ,नार्वे इत्यादी देशो में हिंदी अध्ययन – अध्यापन की व्यवस्था है |
   विदेशो में 25 से अधिक पत्र – पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित होती है | यु ए इ के ’ हम ‘ एफ एम सहित अनेक देश जैसे बी बी सी लन्दन , जर्मनी के डायचे वेले , जापान के एन एच के वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडिओ इन्टरनेशनल हिंदी में प्रसारित हने वाले कार्यक्रम है |

   हिंदी का प्रसार , लोकप्रियता जिस कदर बढ़ी है और आज यह विश्व की दूसरी बोलने वाली भाषा बन गयी है बहुत जल्द ही यह विश्व भाषा के रूप में उभरेगी ....    

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

9:55 pm

हिंदी भाषा की उपेक्षा कर किस ओर बढ़ रहे हम ....

   यह जानकर आप सब को भी हैरानी होगी कि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है –हिन्दी | चीनी भाषा मंदारिन के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है | भारत और अन्य देशो में 60 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते , पढते और लिखते है | भारत के अतिरिक्त मरिशस , सूरीनाम , गुयाना ,फिजी जैसे देशो में भी अधिकतर जनता हिंदी बोलती है |
    लेकिन क्या हम भारत के लोग अपनी भाषा हिंदी को महत्व दे रहे है ?
सन 1953 से 14 सितम्बर को प्रति वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है क्या हमारी हिंदी भाषा मर चुकी है कि हम उसे एक विशेष दिन श्रध्दांजलि अर्पित करते है क्या कभी अपने अंग्रेजी दिवस या चीनी दिवस सुने है ? नही ना ? हिंदी दिवस मानाने का अर्थ ऐसा लगता है कि गुम होते हुए किसी चीज को बचाने का प्रयास किया जा रहा है |
    हिंदी भाषा का इतना प्रचलन होते हुए भी हम दुसरे भाषा के पीछे भागते है हमारी सोच ऐसी हो गयी है कि जिसे अंग्रेजी नही आती उसे हीन मानते है हम सोचते है की अंग्रेजी विकसितो की भाषा है |    लेकिन क्या चीन , स्पेन , फ्रांस , रूस ये अपने ही भाषा को मजबूत कर विकसित नही है | विकास करने के लिए दुसरो की भाषा भी जननी चाहिए  लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये की अपने इतिहास को जनना चाहिए | कितने बड़े बड़े लेखक प्रेमचंद्र , मैथिलि शरण गुप्त और बहुत लेखक  जिन्होंने सामाजिक जीवन का सही और सजीव चित्रण किया है हम उसे नही पढते नही जानते | आज बड़े वर्ग और छोटे वर्ग में दूरियां क्यों बढ़ रही है इसी भाषा के विभाजन से बड़ा वर्ग अपना इतिहास नही जान पाता | वो नही जान पता की हमारा देश पहले कैसा था या अब कैसा है | अगर वह इतिहास पढता भी है अंग्रेजी भाषा में पढने की वजह से उसके अन्दर वो भाव पैदा नही होता  क्योंकि मातृभाषा में लिखी हुई लेख जो एक लेखक अपनी लेख को सजीव बना देता है उसे कोई कितना भी सही तरीके से अनुवाद कर ले उसके अन्दर वो भाव नही भर सकता |    
    कोई बच्चा माँ के पेट से कोई भाषा सिख कर नहीं आता उसे भाषा का ज्ञान अपने आस पास सुनाई देने वाली भाषा से ही होता है | भारत के अधिकतर घरो में बोलचाल की भाषा हिंदी है ऐसे में बच्चे हिंदी भाषा आसानी से सिख और समझ सकते है  लेकिन जब यही बच्चे 3 या 4 साल के होते है तो इन्हें अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में भेजा जाता है जहाँ इन पर अंग्रेगी सिखने का दबाव डाला जाता है | हालत ये है की ये बच्चे आस पास सुनते और बोलते हिंदी में है और पढते अंग्रेगी में है जिससे ये अपने समाज को अपने परिवेश को सही तरीके से नही जान पाते क्योंकि अपने परिवेश को देखकर उनके अन्दर जानने की जिज्ञासा होती है तो स्कूल में उसे हिंदी में बताया नही जाता और जो बाते अंग्रेजी में बताई जाती है वह उनको समझ नही आता | अब तो ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ बड़े शहर की मदर ( माँ ) अपने बच्चे से अंग्रेजी में ही बोलती है  don’t cry baby , don’t touch this beta  अब आप ही बताईये अगर कोई बच्चा रोये तो एक साधारण माँ कितने तरीके से शायद सैकड़ो तरीके से अपने बच्चे को मना सकती है एक साधारण माँ जो अपने बच्चे को मातृभाषा में प्यार और दुलार दे सकती है उसके अन्दर जो भावनाएं जो प्यार भर सकती  है क्या  वे औरते जो है तो भारत की बोलती हिंदी है लेकिन थोडा अंग्रेजी बोलने का शौक पूरा करती है और बच्चे को अंग्रेजी बोलती है अपने बच्चे में वह प्यार वह भावनाए भर सकती है ? बिलकुल नही |

  बच्चो को उसके मातृभाषा से दूर कर उनको जबरदस्ती अंग्रेजी सिखने और बोलने पर मजबूर करते देख मुझे तो ऐसा लग रहा है की इनका हाल एक रोबोट जैसे हो गया है जो कुछ विशेष आवाज से नियंत्रित ( voice control ) होते है जिनके अन्दर भावनाओं की कमी है ....

सोमवार, 24 अगस्त 2015

12:34 am

क्या तुम राधे माँ का भक्त नही हो ? लेकिन क्यों ?




    टीवी  पर समाचार देखा की राधे माँ को पुलिस पकड़ कर ले गयी , बहुत दुःख हुआ लेकिन बुरा तो तब लगा जब  देखा की पुलिस ने जैसे ही सवाल पूछा राधे माँ बेहोश होकर निचे गिर गयी | मुझे तो यकीन नही हो रहा था की जिसके लाखो भक्त है , जो देवी है ,  माँ है उसके साथ ये पुलिस वाले ऐसा क्यों कर रहे है ...

     मैंने भी पता लगाने के लिए कि  लोग क्या सोचते है राधे माँ के बारे में  अपने दोस्त जिससे मै हमेशा बाते किया करता हूँ  के पास गया और पूछा यार ये बताओ तुम्हे राधे माँ कैसी लगती है ..उसने बोला क्या यार ये तो हर कोई जनता है बहुत बुरी है | मुझे अच्छा तो नही लगा फिर भी मैंने पूछा क्यों क्या बुराइ है उसमे ? अरे यार छोटे कपडे पहन कर नाचती है अपने आप को देवी माँ कहती है , नही राधे माँ मैंने जवाब दिया तो इसमें बुरा क्या है आज कल तो फ़िल्मी हीरोइने भी छोटे कपडे पहन कर नाचती है , आर्केस्ट्रा में छोटे कपडे पहन कर लडकियां नाचती है |
     उसने कहा अरे यार पुरे भक्तों के बीच किसी को किस कर देती है , तो क्या हुआ भक्त भी तो उसे किस करते है वैसे भी आज कल तो पार्क में , चलती बसों में , फिल्मो में हर जगह किस करना तो आम बात हो गया है – मैंने कहा |
  तुम समझो यार सबके बीच में किसी के भी गोद में बैठ जाना ये कोई अच्छी बात है क्या ... मैंने भी कहा बोल तो सही रहे हो लेकिन भक्त खुश है और राधे माँ उनके ख़ुशी के लिए कुछ भी कर सकती है
     मेरा  दोस्त तो तो अब गुस्साने लगा बोला की तुम नही जानते हो उसी की एक भक्त ने बताया है की जो भक्त ज्यादा गहने पहना रहता है या ज्यादा अमिर दिखता है उसे लेकर एक कमरे में चली जाती है और तो और अपने आपको देवी का अवतार कहती है , अपने को राधे माँ कहलवाती है ऐसे लोगो को तो .............
    अरे अरे कहो चुप  क्यों हो गये | लेकिन मुझे समझ आ गया था की मेरे दोस्त को ही नही ऐसे बहुत से लोग है जिन्हें इस बात का बुरा नही लगता की वो सरेआम लोगो के गोद में बैठे , लोगो के बीच नाचे , सरेआम किसी  को किस करे या उनके साथ रात गुजारे पर वो अपने आप को राधे माँ या देवी का अवतार न बताये बल्कि कोई आईटम डांसर या बार डांसर बन जाये किसी कोठे के धंधे वाली बन जाये |

    लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इतना सब जानते हुए भी हम जैसे ही लोग उसे राधे माँ और अपने को उसका भक्त कहते है ....     

शनिवार, 15 अगस्त 2015

8:21 pm

सड़क पर बिखरे तिरंगे को देख आप क्या सोचते हैं



वह तिरगा जिसको  देश में किसी भी तरह के फहराए जाने वाले झंडे से ऊँचा रहने का अधिकार था | आज वही तिरंगा सडको पर बिखरा मिलता है क्यों ?
     आइये जानते है राष्ट्र ध्वज के उस ऊंचाई से सड़क पर बिखरने तक का सफ़र  .....

 1 . सवतंत्रता के बाद राष्ट्र ध्वज को आम जनता के लोग गिने चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़ सार्वजनिक रूप से नही फहरा सकते थे | 26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में कुछ संशोधन किया गया और इस तरह से भारत के नागरिको को अपने घरो ,ऑफिस ,फैक्ट्रीयो और आदि निजी संस्थानों में न केवल राष्ट्रीय दिवस पर बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के तिरंगा फरहाने की अनुमति मिल गयी | लेकिन इसमें कहा गया की धवज संहिता का बिलकुल कड़ाई से पालन होना चाहिए | अब तिरंगा जिसे हम देखकर देश के शान और मान –सम्मान को याद करते थे उस तिरंगे को घर घर फहरा सकते है और हम सभी जानते है कि चाहे कितना भी कीमती वस्तु हो अपने पास होने पर उसका क्या महत्व रह जाता है |

  2 . पहले ऐसा नियम था की राष्ट्र ध्वज को परदे या वस्त्र के रूप में प्रयोग नही कर सकते फिर 5 जुलाई 2005 की भारत सरकार ने संहिता में संशोधन किया और ध्वज को पोशाक के रूप में प्रयोग किये जाने की अनुमति दे दी लेकिन इसे कमर के निचे के कपडे के रूप में प्रयोग नही किया जा सकता |




    मेरा सवाल यही है की आखिर इतने संसोधन का क्या मतलब है जो वस्तू जितना ही बहुमूल्य हो उसे उतना ही संभाल कर रखना चाहिए उसे विशेष जगह पर विशेष दिन को प्रदर्शित किया जाना चाहिए ताकि लोगो को उसे देखकर उसके गरिमा का एहसास हो | आपने रस्ते में चलते लोगो को मंदिर देखकर सर झुकाते जरुर देखे होंगे लेकिन क्या कोई अपने कपडे पर मंदिर बनवा ले तो उसे देखकर कोई सर झुकाएगा ? नही ना.. तो तिरंगे को कपडा बनाकर पह्नने का क्या मतलब ? 

    बच्चो को चाहे कितना ही कीमती खिलौना दे दें वो उसको कुछ समय बाद जरुर तोड़ देगा क्योंकि उसकी कीमत आप जानते है वह बच्चा नही जनता तो ऐसे ही  अगर हमें तिरंगे के मान मर्यादा का ख्याल रखना है तो उसे फूतपथो पर छोटी बड़ी दुकानों पर इस तरीके से नही बेचना चाहिए |
 आप सभी देखते है की 14 -15 अगुस्त को तो हर कोई तिरंगे का सम्मान करता है लेकिन 15 अगस्त की शाम और 16 अगस्त को देखिये की उस तिरंगे का असली सम्मान करने वाला कौन कौन है .....